Tenali Raman story – Achha Tu Maan Se Bhi Majak Karega ? : Tenali Raman | अच्छा, तू माँ से भी मजाक करेगा ? : तेनालीराम
कोई छह सौ वर्ष पुरानी बात है। विजयनगर का साम्राज्य सारी दुनिया में प्रसिद्ध था। उन दिनों भारत पर विदेशी आक्रमणों के कारण प्रजा बड़ी मुश्किलों में थी। हर जगह लोगों के दिलों में दुख-चिंता और गहरी उधेड़-बुन थी। पर विजयनगर के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय की कुशल शासन-व्यवस्था, न्याय-प्रियता और प्रजा-वत्सलता के कारण वहाँ प्रजा बहुत खुश थी। राजा कृष्णदेव राय ने प्रजा में मेहनत और सद्गुणों के साथ-साथ अपनी संस्कृति के लिए स्वाभिमान का भाव पैदा कर दिया था, इसलिए विजयनगर की ओर देखने की हिम्मत किसी विदेशी आक्रांता की नहीं थी। विदेशी आक्रमणों की आँदी के आगे विजयनगर एक मजबूत चट्टान की तरह खड़ा था। साथ ही वहाँ लोग साहित्य और कलाओं से प्रेम करने वाले तथा परिहास-प्रिय थे।
उन्हीं दिनों की बात है, विजयनगर के तेनाली गाँव में एक बड़ा बुद्धिमान और प्रतिभासंपन्न किशोर था। उसका नाम था रामलिंगम। वह बहुत हँसोड़ और हाजिरजवाब था। उसकी हास्यपूर्ण बातें और मजाक तेनाली गाँव के लोगों को खूब आनंदित करते थे। रामलिंगम खुद ज्यादा हँसता नहीं था, पर धीरे से कोई ऐसी चतुराई की बात कहता कि सुनने वाले हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते। उसकी बातों में छिपा हुआ व्यंग्य और बड़ी सूझ-बूझ होती। इसलिए वह जिसका मजाक उड़ाता, वह शख्स भी द्वेष भूलकर औरों के साथ खिलखिलाकर हँसने लगता था। यहाँ तक कि अकसर राह चलते लोग भी रामलिंगम की कोई चतुराई की बात सुनकर हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते।
अब तो गाँव के लोग कहने लगे थे, ‘‘बड़ा अद्भुत है यह बालक। हमें तो लगता है कि यह रोते हुए लोगों को भी हँसा सकता है। रामलिंगम कहता, ‘‘पता नहीं, रोते हुए लोगों को हँसा सकता हूँ कि नहीं, पर सोते हुए लोगों को जरूर सकता हूँ।’’ सुनकर आसपास खड़े लोग ठठाकर हँसने लगे।
यहाँ तक कि तेनाली गाँव में जो लोग बाहर से आते, उन्हें भी गाँव के लोग रामलिंगम के अजब-अजब किस्से और कारनामे सुनाया करते थे। सुनकर वे भी खिलखिलाकर हँसने लगते थे और कहते, ‘‘तब तो यह रामलिंगम सचमुच अद्भुत है। हमें तो लगता है कि यह पत्थरों को भी हँसा सकता है!’’
गाँव के एक बुजुर्ग ने कहा, ‘‘भाई, हमें तो लगता है कि यह घूमने के लिए पास के जंगल में जाता है, तो वहाँ के पेड़-पौधे और फूल-पत्ते भी इसे देखकर जरूर हँस पड़ते होंगे।’’
एक बार की बात है, रामलिंगम जंगल में घूमता हुआ माँ दुर्गा के एक प्राचीन मंदिर में गया। उस मंदिर की मान्यता थी और दूर-दूर से लोग वहाँ माँ दुर्गा का दर्शन करने आया करते थे।
रामलिंगम भीतर गया तो माँ दुर्गा की अद्भुत मूर्ति देखकर मुग्ध रह गया। माँ के मुख-मंडल से प्रकाश फूट रहा था। रामलिंगम की मानो समाधि लग गई। फिर उसने दुर्गा माता को प्रणाम किया और चलने लगा। तभी अचानक उसके मन में एक बात अटक गई। माँ दुर्गा के चार मुख थे, आठ भुजाएँ थीं। इसी पर उसका ध्यान गया और अगले ही पल उसकी बड़े जोर से हँसी छूट गई।
देखकर माँ दुर्गा को बड़ा कौतुक हुआ। वे उसी समय मूर्ति से बाहर निकलकर आईं और रामलिंगम के आगे प्रकट हो गईं। बोलीं, ‘‘बालक, तू हँसता क्यों है ?’’ रामलिंगम माँ दुर्गा को साक्षात सामने देखकर एक पल के लिए तो सहम गया। पर फिर हँसते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें माँ, एक बात याद आ गई, इसीलिए हँस रहा हूँ।’’
‘‘कौन सी बात ? बता तो भला !’’ माँ दुर्गा ने पूछा।
इस पर रामलिंगम ने हँसते-हँसते जवाब दिया, ‘‘माँ, मेरी तो सिर्फ एक ही नाक है पर जब जुकाम हो जाता है तो मुझे बड़ी मुसीबत आती है। आपके तो चार-चार मुख हैं और भुजाएँ भी आठ हैं। तो जब जुकाम हो जाता होगा, तो आपको और भी ज्यादा मुसीबत…!’’ रामलिंगम की बात पूरी होने से पहले ही माँ दुर्गा खिलखिलाकर हँस पड़ीं। बोलीं, ‘हट पगले, तू माँ से भी मजाक करता है !’’
फिर हँसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘पर आज मैं समझ गई हूँ कि तुझमें हास्य की बड़ी अनोखी सिद्धि है। अपनी इसी सूझ-बूझ और हास्य के बल पर तू नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। पर एक बात याद रख, अपनी इस हास्य-वृत्ति का किसी को दुख देने के लिए प्रयोग मत करना। सबको हँसाना और दूसरों की भलाई के काम करना। जा, तू राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जा। वही तेरी प्रतिभा का पूरा सम्मान करेंगे।’’
उस दिन रामलिंगम दुर्गा माँ के प्राचीन मंदिर से लौटा, तो उसका मन बड़ा हल्का-फुल्का था। लौटकर उसने माँ को यह अनोखा प्रसंग बताया। सुनकर माँ चकित रह गईं।
और फिर होते-होते पूरे तेनाली गाँव में यह बात फैल गई कि रामलिंगम को दुर्गा माँ ने बड़ा अद्भुत वरदान दिया है। यह बड़ा नाम कमाएगा और बड़े-बड़े काम करेगा। उसके साथ ही साथ तेनाली गाँव का नाम भी ऊँचा होगा।
(प्रकाश मनु)
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